February 26, 2017
0
अंधकार बढ़ता जाता है!

मिटता अब तरु-तरु में अंतर,
तम की चादर हर तरुवर पर,
केवल ताड़ अलग हो सबसे अपनी सत्ता बतलाता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!

दिखलाई देता कुछ-कुछ मग,
जिसपर शंकित हो चलते पग,
दूरी पर जो चीजें उनमें केवल दीप नजर आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!

ड़र न लगे सुनसान सड़क पर,
इसीलिए कुछ ऊँचा स्वर कर
विलग साथियों से हो कोई पथिक, सुनो, गाता आता है!
अंधकार बढ़ता जाता है!

अन्य 


0 comments:

Post a Comment

हरिवंश राय बच्चन की लोकप्रिय कविताएं -Harivansh Rai Bachchan's Popular Poetry / Kavitaen

चाँदनी फैली गगन में, चाह मन में / हरिवंशराय बच्चन ...Harivansh Rai Bachchan समीर स्‍नेह-रागिनी सुना गया / हरिवंशराय बच्चन --...Harivansh...